धर्मेंद्र कुमार भारत को एक धर्मनिरपेक्ष देश माना जाता है। संविधान की प्रस्तावना में लिखा है कि भारत एक पंथनिरपेक्ष देश है। इन दोनों में अंतर क्या है? बताइए! आमतौर पर नेताओं द्वारा पंथनिरपेक्ष को धर्मनिरपेक्ष के रूप में पेश किया जाता रहा है। यहां तक कि सामाजिक बोलचाल में पंथनिरपेक्षता ही धर्मनिरपेक्षता हो चली है। इन दोनों में अंतर क्या है यह एक बड़ा सवाल है। जिसपर चर्चा की जाए तो बात कहीं और चली जाती है।
चलिए! इस उलझन में सिर-फुटव्वल करने से पहले जरा सोचिए... क्या वाकई इस बहस की जरूरत है।
चुनाव होने वाले हैं...सभी नेता अपनी ढपली के साथ अपना राग सुना रहे हैं। अपने हिसाब से नई परिभाषाएं गढ़ रहे हैं। टारगेट सीधा वोट है, वो दे दो उनको... कैसे भी। इसके बाद अगले पांच साल तक वो ही वो हैं हर जगह...बेचारा वोटर कहीं नहीं। उसका नंबर तो पांच साल बाद ही आना है।
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