धर्मेंद्र कुमार
देखते-देखते एक और नेता 'पैदा' हो गया। पैदा होना इसलिए, क्योंकि कुछ माह पहले तक इस 'नेता' के बारे में लिखे गए वेबपेज 'सर्वाधिक देखे गए वेबपेजों की सूची' से नदारद थे। लेकिन, अभी पिछले कई दिनों से पहली पांच खबरें इसी 'उदीयमान' नेता की हैं।
अपने पत्रकारिता जीवन के शुरुआती दौर की एक घटना मुझे याद आ रही है...आगरा में आपराधिक गतिविधियों में लिप्त एक व्यक्ति की पुलिस थाने में पिटाई के बाद उसके फोटो अखबार में छपने के लिए आए हुए थे। उन्हें छपने के लिए चुन लिया गया। इस पर मेरे एक सहयोगी के मुख से त्वरित प्रतिक्रिया हुई, 'सर! फोटो छपते ही नेता बन जाएगा यह...'। ऐसा ही हुआ। मैं वहां अगले छह महीने और रहा और वह 'श्रीमान' एक अग्रणी राजनीतिक दल के एक बड़े नेता बन चुके थे। उनकी प्रेस विज्ञप्तियां लगातार छपने के लिए आ रही थीं। और हम... छाप रहे थे।
ऐसा क्यों होता है...ये सवाल है...कल तक वरुण गांधी अपना अस्तित्व ढूंढ़ रहे थे। हाथ-पैर मार रहे थे, लेकिन 'सफलता' कोसों दूर थी। आज वह खुश हैं और अपने साथियों से कह रहे हैं कि अब 'डिमांड' बढ़ गई है। आखिर जिम्मेदार कौन है...। पढ़ें
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