धर्मेंद्र कुमार
रेल बजट के 'ट्रैक' से उतर जाने के बाद प्रणब दा ने आम बजट को संसद में पेश कर दिया। पांच राज्यों में हालिया हुए चुनावों में कांग्रेस पार्टी के खराब प्रदर्शन को देखते हुए इस बजट से आम आदमी को कुछ 'खास' मिलने की उम्मीदें जग गई थीं। लेकिन कमोबेश उन उम्मीदों पर पानी ही फिरा है। तमाम तरह की प्रतिक्रियाओं के बीच जैसा कि भाकपा नेता गुरुदास दासगुप्ता ने कहा भी कि इस तरह का बजट तो एक 'क्लर्क' भी बना सकता था। यदि पूरे बजट पर निगाह डाली जाए तो यह वैसा ही साधारण बही-खाता जैसा लगा जिन्हें गांव में हर साल दिवाली पर अपडेट किया जाता है।
एक रिवाज जैसा बन गया कर छूट का मामला पहले की तरह ही दिखा। सामान्य श्रेणी के लिए आयकर छूट की सीमा बढ़ाकर दो लाख रुपये कर दी गई। पिछले कुछ सालों से यही चलन चलता चला आ रहा है। हालांकि एक परिवर्तन जरूर दिखा। अब आठ लाख रुपये की जगह 10 लाख रुपये से अधिक की वार्षिक आय पर 30 फीसदी कर लगेगा। वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने इस तरह से मामूली राहत का झुनझुना ही दिखाया है।
सेवा कर को 10 फीसदी से बढ़ाकर 12 फीसदी कर दिया है। इस बढ़ोतरी से लगभग हर क्षेत्र में दाम बढ़ेंगे। पहले से ही महंगाई से त्रस्त आम आदमी की मुश्किलें और बढ़ने वाली हैं। सेवा कर के साथ-साथ उत्पादन शुल्क में वृद्धि से आम आदमी द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली ज्यादातर चीजें और सेवाएं महंगी हो जाएंगी। दैनिक उपभोग की लगभग सभी वस्तुएं महंगी होने जा रही हैं। कारें और सोना खरीदना तो महंगा हुआ ही है, कभी-कभार रेस्त्रां में जाकर दावत उड़ाना भी महंगा हो गया है।
छह विशिष्ट जीवनरक्षक दवाओं एवं टीकों से उत्पाद शुल्क पूरी तरह खत्म करने एवं सीमा शुल्क घटाकर पांच फीसदी की रियायत देने से कैंसर और एड्स जैसी बीमारियों की पहले से ही बहुत महंगी दवाइयां कुछ सस्ती जरूर हो जाएंगी।
देश के विकास के लिए उद्योगों का विकास होना बहुत जरूरी है, लेकिन वित्त मंत्री ने अपने बजट में कोई ऐसी बात नहीं कही जिससे औद्योगिक विकास की सम्भावना को बल मिलता दिखे।
वित्त मंत्री ने सिंचाई सुविधा और भंडारण के लिए बजट में धन का आवंटन बढ़ाने और किसानों द्वारा समय पर चुकाए जाने वाले कर्जे में तीन फीसदी की अतिरिक्त छूट जैसी कुछ चंद अच्छी बातें जरूर की हैं लेकिन सबसे मूल मुद्दा बढ़ती महंगाई है, जिसे इस बजट के जरिए रोका जाना मुश्किल दिख रहा है। नई उर्वरक परियोजनाओं की स्थापना एवं विस्तार के लिए आवश्यक उपकरणों के आयात पर सीमा शुल्क में पूरी छूट मिलने की बात कही गई है। इससे किसानों को कुछ फायदा होगा।
10 लाख रुपये की वार्षिक आय सीमा वालों को अंशधारिता (इक्विटी) में 50,000 रुपये के निवेश पर आयकर में 50 फीसदी की छूट देने के लिए एक नई कर छूट योजना 'राजीव गांधी शेयर बचत योजना' का प्रस्ताव रखा गया है, हालांकि, इस योजना के सम्बंध में विस्तृत जानकारी नहीं दी गई है। लेकिन 10 लाख रुपये सालाना कमाने वाला पहले से ही कर बचत के लिए कई और मदों में निवेश कर रहा व्यक्ति इस योजना में कितना निवेश कर पाएगा, यह सोचने वाली बात है। शेयरों में इस तरह के सीधे निवेश से अभी तक बचे जाने की राय ही दी जाती थी लेकिन अब इससे एक विरोधाभास पैदा होगा। खास बात यह है कि इसमें किया गया निवेश तीन साल से पहले निकाला नहीं जा सकेगा। इस बीच यदि शेयरों में अच्छा मुनाफा हुआ तो इस निवेश का कोई अर्थ नहीं रहेगा। हालांकि मुखर्जी ने शेयरों की खरीद-बिक्री पर लगने वाले शुल्क को भी 0.125 फीसदी से घटाकर 0.1 फीसदी करने का प्रस्ताव रखा। इससे जरूर शेयर बाजार में कुछ निवेश वृद्धि की संभावना बनती है।
सरकार ने अगले वित्त वर्ष में सार्वजनिक उपक्रमों की शेयर बिक्री के जरिये 30,000 करोड़ रुपये जुटाने का लक्ष्य रखा है। चालू वित्त वर्ष 2011-12 में विनिवेश लक्ष्य 40,000 करोड़ रुपये था लेकिन सरकार सिर्फ 14,000 करोड़ रुपये ही जुटा पाई। इसलिए इस बार इसे 10 हजार करोड़ रुपये कम रखा गया है। बाजार की खराब रही स्थिति को इसके लिए जिम्मेदार माना जा सकता है लेकिन इसे सरकार की असफलता से भी जोड़कर देखा जा सकता है।
बीते कई सालों के दौरान इस बजट में पहली बार बुजुर्गों के लिए कोई खास प्रावधान नहीं किए गए हैं। बुजुर्गों के लिए 60 से 80 साल की आयु तक 2.50 लाख रुपये की आमदनी पर पहले की तरह कोई कर नहीं लगेगा। 80 साल से अधिक आयु वाले वरिष्ठ नागरिकों को पांच लाख रुपये तक की आय पर कोई कर देय नहीं होगा। हालांकि अब महिलाओं और पुरुष करदाताओं के लिए करमुक्त आय में कोई अंतर नहीं रहा है। इससे पहले पुरुषों के लिए 1.80 लाख तथा महिलाओं के लिए 1.90 लाख रुपये तक की आय करमुक्त होती थी।
हैमलेट का उल्लेख कर प्रणब दा ने यह जरूर कहा कि दयावान बनने के लिए क्रूरता जरूरी है लेकिन पहले से ही महंगाई और भ्रष्टाचार से त्रस्त सरकार और कितनी क्रूरता दिखाना चाहती है यह समझ से परे है। कई विश्लेषकों का मानना है कि यह सरकार अगले साल अपने अंतिम बजट में कुछ 'लोकप्रिय' प्रावधान ला सकती है जिनसे उसे चुनावों में कुछ मदद मिल सके। इसलिए इस बार तो इसी बजट से गुजारा करना है। तब तक देश की जनता इसी तरह परेशानियों का सामना करने के लिए तैयार रहे...।
रेल बजट के 'ट्रैक' से उतर जाने के बाद प्रणब दा ने आम बजट को संसद में पेश कर दिया। पांच राज्यों में हालिया हुए चुनावों में कांग्रेस पार्टी के खराब प्रदर्शन को देखते हुए इस बजट से आम आदमी को कुछ 'खास' मिलने की उम्मीदें जग गई थीं। लेकिन कमोबेश उन उम्मीदों पर पानी ही फिरा है। तमाम तरह की प्रतिक्रियाओं के बीच जैसा कि भाकपा नेता गुरुदास दासगुप्ता ने कहा भी कि इस तरह का बजट तो एक 'क्लर्क' भी बना सकता था। यदि पूरे बजट पर निगाह डाली जाए तो यह वैसा ही साधारण बही-खाता जैसा लगा जिन्हें गांव में हर साल दिवाली पर अपडेट किया जाता है।
एक रिवाज जैसा बन गया कर छूट का मामला पहले की तरह ही दिखा। सामान्य श्रेणी के लिए आयकर छूट की सीमा बढ़ाकर दो लाख रुपये कर दी गई। पिछले कुछ सालों से यही चलन चलता चला आ रहा है। हालांकि एक परिवर्तन जरूर दिखा। अब आठ लाख रुपये की जगह 10 लाख रुपये से अधिक की वार्षिक आय पर 30 फीसदी कर लगेगा। वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने इस तरह से मामूली राहत का झुनझुना ही दिखाया है।
सेवा कर को 10 फीसदी से बढ़ाकर 12 फीसदी कर दिया है। इस बढ़ोतरी से लगभग हर क्षेत्र में दाम बढ़ेंगे। पहले से ही महंगाई से त्रस्त आम आदमी की मुश्किलें और बढ़ने वाली हैं। सेवा कर के साथ-साथ उत्पादन शुल्क में वृद्धि से आम आदमी द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली ज्यादातर चीजें और सेवाएं महंगी हो जाएंगी। दैनिक उपभोग की लगभग सभी वस्तुएं महंगी होने जा रही हैं। कारें और सोना खरीदना तो महंगा हुआ ही है, कभी-कभार रेस्त्रां में जाकर दावत उड़ाना भी महंगा हो गया है।
छह विशिष्ट जीवनरक्षक दवाओं एवं टीकों से उत्पाद शुल्क पूरी तरह खत्म करने एवं सीमा शुल्क घटाकर पांच फीसदी की रियायत देने से कैंसर और एड्स जैसी बीमारियों की पहले से ही बहुत महंगी दवाइयां कुछ सस्ती जरूर हो जाएंगी।
देश के विकास के लिए उद्योगों का विकास होना बहुत जरूरी है, लेकिन वित्त मंत्री ने अपने बजट में कोई ऐसी बात नहीं कही जिससे औद्योगिक विकास की सम्भावना को बल मिलता दिखे।
वित्त मंत्री ने सिंचाई सुविधा और भंडारण के लिए बजट में धन का आवंटन बढ़ाने और किसानों द्वारा समय पर चुकाए जाने वाले कर्जे में तीन फीसदी की अतिरिक्त छूट जैसी कुछ चंद अच्छी बातें जरूर की हैं लेकिन सबसे मूल मुद्दा बढ़ती महंगाई है, जिसे इस बजट के जरिए रोका जाना मुश्किल दिख रहा है। नई उर्वरक परियोजनाओं की स्थापना एवं विस्तार के लिए आवश्यक उपकरणों के आयात पर सीमा शुल्क में पूरी छूट मिलने की बात कही गई है। इससे किसानों को कुछ फायदा होगा।
10 लाख रुपये की वार्षिक आय सीमा वालों को अंशधारिता (इक्विटी) में 50,000 रुपये के निवेश पर आयकर में 50 फीसदी की छूट देने के लिए एक नई कर छूट योजना 'राजीव गांधी शेयर बचत योजना' का प्रस्ताव रखा गया है, हालांकि, इस योजना के सम्बंध में विस्तृत जानकारी नहीं दी गई है। लेकिन 10 लाख रुपये सालाना कमाने वाला पहले से ही कर बचत के लिए कई और मदों में निवेश कर रहा व्यक्ति इस योजना में कितना निवेश कर पाएगा, यह सोचने वाली बात है। शेयरों में इस तरह के सीधे निवेश से अभी तक बचे जाने की राय ही दी जाती थी लेकिन अब इससे एक विरोधाभास पैदा होगा। खास बात यह है कि इसमें किया गया निवेश तीन साल से पहले निकाला नहीं जा सकेगा। इस बीच यदि शेयरों में अच्छा मुनाफा हुआ तो इस निवेश का कोई अर्थ नहीं रहेगा। हालांकि मुखर्जी ने शेयरों की खरीद-बिक्री पर लगने वाले शुल्क को भी 0.125 फीसदी से घटाकर 0.1 फीसदी करने का प्रस्ताव रखा। इससे जरूर शेयर बाजार में कुछ निवेश वृद्धि की संभावना बनती है।
सरकार ने अगले वित्त वर्ष में सार्वजनिक उपक्रमों की शेयर बिक्री के जरिये 30,000 करोड़ रुपये जुटाने का लक्ष्य रखा है। चालू वित्त वर्ष 2011-12 में विनिवेश लक्ष्य 40,000 करोड़ रुपये था लेकिन सरकार सिर्फ 14,000 करोड़ रुपये ही जुटा पाई। इसलिए इस बार इसे 10 हजार करोड़ रुपये कम रखा गया है। बाजार की खराब रही स्थिति को इसके लिए जिम्मेदार माना जा सकता है लेकिन इसे सरकार की असफलता से भी जोड़कर देखा जा सकता है।
बीते कई सालों के दौरान इस बजट में पहली बार बुजुर्गों के लिए कोई खास प्रावधान नहीं किए गए हैं। बुजुर्गों के लिए 60 से 80 साल की आयु तक 2.50 लाख रुपये की आमदनी पर पहले की तरह कोई कर नहीं लगेगा। 80 साल से अधिक आयु वाले वरिष्ठ नागरिकों को पांच लाख रुपये तक की आय पर कोई कर देय नहीं होगा। हालांकि अब महिलाओं और पुरुष करदाताओं के लिए करमुक्त आय में कोई अंतर नहीं रहा है। इससे पहले पुरुषों के लिए 1.80 लाख तथा महिलाओं के लिए 1.90 लाख रुपये तक की आय करमुक्त होती थी।
हैमलेट का उल्लेख कर प्रणब दा ने यह जरूर कहा कि दयावान बनने के लिए क्रूरता जरूरी है लेकिन पहले से ही महंगाई और भ्रष्टाचार से त्रस्त सरकार और कितनी क्रूरता दिखाना चाहती है यह समझ से परे है। कई विश्लेषकों का मानना है कि यह सरकार अगले साल अपने अंतिम बजट में कुछ 'लोकप्रिय' प्रावधान ला सकती है जिनसे उसे चुनावों में कुछ मदद मिल सके। इसलिए इस बार तो इसी बजट से गुजारा करना है। तब तक देश की जनता इसी तरह परेशानियों का सामना करने के लिए तैयार रहे...।
No comments:
Post a Comment