Tuesday, June 09, 2009

आन पड़ी है ऑनलाइन वोटिंग की जरूरत

धर्मेंद्र कुमार
15वीं लोकसभा का गठन हो चुका है। सरकार बन चुकी है। नई सरकार अपने काम में जुटकर अच्छा प्रदर्शन करने का प्रयास कर रही है, ताकि अगले चुनाव में दोबारा विजयश्री हासिल की जा सके। इधर, विपक्षी इस काम में जुट गए हैं कि अगली बार कैसे उनकी ही सरकार बने। एक काम 'हम भारत के लोगों' के लिए भी है...।

इस बार हुए चुनावों के परिणामों को न केवल देशभर में तारीफें मिलीं, बल्कि दुनियाभर के देशों ने भी भारतीय जनता के मानसिक संतुलन की प्रशंसा की। ये सब तब हुआ, जब कुल 71 करोड़ 40 लाख मतदाताओं में से मात्र 60 फीसदी यानी करीब 43 करोड़ लोगों ने ही वोट दिया। 40 फीसदी लोग वोट डालने ही नहीं गए। अपनी-अपनी वजहों से...। वोट प्रतिशत बढ़े तो हम तारीफों के 'शौकीन' लोगों को और भी तारीफें मिल सकती हैं।

वैसे तो वोट प्रतिशत बढ़ाने के लिए देशभर में कई समाजसेवी संगठन जुटे हुए हैं। खुद नेताओं की बिरादरी द्वारा किए गए प्रयासों को भी अनदेखा नहीं किया जा सकता। वोटरों को उनके घरों से निकाल कर मतदान बूथ तक लाने में कितनी मेहनत करनी पड़ती है, ये जरा उनसे पूछिए...।

वोट डालने के लिए प्रेरित करने को सरकारी स्तर पर भी खूब प्रयास किए जाते हैं। इसके लिए मीडिया का भी उपयोग किया जाता है। लेकिन अपेक्षित परिणामों की अभी भी सिर्फ प्रतीक्षा ही है।

दरअसल इसके लिए कुछ ठोस प्रयास करने की आवश्यकता है। वक्त बदल रहा है और पीढ़ियां भी। युवाओं में वोट के लिए उत्साह है, लेकिन उनकी व्यस्तताएं भी हैं। वोट न डालने जाने के उनके तर्क भी कभी-कभी अकाट्य होते हैं।

चुनाव आयोग को इस दिशा में सोचना चाहिए कि युवाओं में वोट डालने के लिए कैसे और अधिक उत्साह जगाया जाए। तकनीक पर बढ़ती निर्भरता के चलते ऑनलाइन वोटिंग एक कारगर तरीका हो सकता है। दुनिया के कई हिस्सों में इसे अपनाया गया है। होनोलुलू में हाल ही में इसे आजमाया भी गया है और इसके परिणाम काफी उत्साहजनक आए हैं।

भारत में इस समय करीब 10 करोड़ इंटरनेट यूजर हैं। साल 2014 यानी संभवत: अगले चुनावों के वक्त इस आंकड़े के करीब पांच गुना होने की उम्मीद है। ज्यादातर यूजर 18 से 45 साल की उम्र के हैं। ऑनलाइन वोटिंग के जरिए इन्हें वोट डालने के लिए आकर्षित किया जा सकता है। यदि इन्हें वोट डालने के लिए सुविधा दे दी जाए, तो वोट न देने वालों की संख्या में करीब 25 फीसदी की कमी आ सकती है। आने वाले वक्त में तकनीक की पहुंच और अधिक लोगों तक होने पर यह आंकड़ा और भी बढ़ सकता है।

अब सवाल यह है कि क्या वास्तव में ऐसी सुविधा मुहैया कराए जाने पर ये लोग वोट डालने आ पाएंगे...। इसे आप ऐसे समझ सकते हैं...। हाल ही में हुए चुनावों के दौरान ज्यादातर समाचार पोर्टलों पर राजनीतिक दलों की ओर चल रहे रुझानों को लेकर मतदान कराए गए। ज्यादातर परिणाम

राजग के पक्ष में दिखे और इससे उत्साहित भारतीय जनता पार्टी को लगने लगा था कि उसके प्रधानमंत्री पद के दावेदार लालकृष्ण आडवाणी का प्रधानमंत्री बनना लगभग तय है। लगभग सभी ऐसे मतदानों में उन्हें 50 फीसदी से ज्यादा वोट मिल रहे थे। ताज्जुब की बात यह है कि चुने गए प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के पक्ष में बहुत कम यानी 20 फीसदी के आसपास ही वोट पड़ रहे थे। उनसे कहीं ज्यादा वोट तो राहुल गांधी, मायावती, नीतीश कुमार को मिले।

ये सर्वेक्षण हरगिज गलत नहीं थे, बल्कि ये इंटरनेट यूजर्स की राय थे। लेकिन ये राय जमीनी नहीं हो सकी, क्योंकि इनमें से ज्यादातर वोटर अपने लैपटॉप को छोड़कर वातानुकूलित ड्रॉइंग रूम से निकलकर बूथ तक जाने की जहमत नहीं उठाते। ये वोटर अपना काम लैपटॉप पर बटन दबाकर ही खत्म समझ लेते हैं।

इन मतदाताओं को वोट देने के लिए प्रेरित करने को चुनाव आयोग को कुछ और मेहनत करनी होगी। जरूरत है एक ऐसा इंटरफेस मुहैया कराए जाने की, जिससे यूजर सीधा इंटरनेट पर आए, अपना क्षेत्र और उम्मीदवार चुने, वोटर आईडी कार्ड पर दिया गया नंबर डाले और कर दे वोट। दोबारा न डाल सके इसके लिए इस आईडी को 'लॉक' किया जा सकता है। ...हो गया घर बैठे वोट... हर तरह से सुरक्षित वोटिंग है ये! यदि अगले चुनावों तक का लक्ष्य इसे बनाया जाए तो यह पूरी तरह संभव है। इसके लिए चुनाव आयोग के पोर्टल को ही प्लेटफॉर्म बनाया जा सकता है।

दूसरी ओर प्रयास राजनीतिक दलों और नेताओं को भी करना है। अपने-अपने व्यक्तिगत पोर्टल बनाने के साथ-साथ उन्हें इस ओर भी ध्यान देना चाहिए। उनके पास अगले पांच साल का समय है, जिसका उपयोग वह इस व्यवस्था को वास्तविक रूप में लाने में कर सकते हैं। इससे चुनावों पर हर बार किए जाने वाले करीब 18 हजार करोड़ रुपये के खर्च में भी कमी आएगी। साथ-साथ उनके खुद के पोर्टल की प्रासंगिकता भी बनी रहेगी।

आजकल हर सुविधा घर पर ही उपलब्ध कराए जाने के दौर में इसके कई और भी फायदे हैं...इनके बारे में चर्चा फिर कभी...

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