---धर्मेंद्र कुमार
दिल्ली के रामकृष्ण आश्रम मार्ग मेट्रो स्टेशन से कुछ ही फासले पर आरामबाग कॉलोनी है। यहां स्थित 'मातृछाया' कई अनाथ बच्चों को ममता की छांव दे रही है।
सेवाभारती संस्थान द्वारा चलाए जा रहे 'मातृछाया' में फिलहाल 15 बच्चे हैं। इनमें एक साल तक के नौ और शेष छह बच्चे सात-आठ साल के हैं। यहां के झूलों पर मुस्कान बिखेरती तपस्या, पवित्री, नेहा, पार्थ... हम सभी का ध्यान अपनी ओर खींचते हैं।
मातृछाया में नीग्रो मूल का अफ्रीकी बच्चा पार्थ भारतीय संस्कारों में पल बढ़ रहा है।
मातृछाया संस्थान के मंत्री पवन बंसल ने बताया कि तकरीबन नौ महीने पहले संस्था को एक अज्ञात व्यक्ति ने फोन पर सूचना दी कि मुखर्जी नगर गंदे नाले के किनारे किसी ने कंबल में लपेटकर एक बच्चा फेंक दिया है और यह बच्चा अफ्रीकी मूल का है। संस्थान की टीम फौरन वहां पहुंची और उसे यहां ले आई। आज यह बच्चा नौ महीने का है और इसका नाम पार्थ रखा गया। पार्थ सभी बच्चों में सबसे ज्यादा भला-चंगा है।
इस संस्था में मां का फर्ज अदा कर रही आया कृष्णा कहती हैं कि यहां के सारे बच्चे उनके जिगर के टुकड़े है किन्तु पार्थ की परवरिश को लेकर वह कहीं ज्यादा उत्साहित हैं।
मातृछाया संस्था की सहमंत्री सुषमा मेहरोत्रा ने बताया कि डेढ़ साल तक के बच्चे को अक्सर घर मिल जाया करता है। अभी तपस्या को दिल्ली के एक निःसंतान दंपती गोद ले रहे हैं और वे उसकी गोद देने की वैधानिक सहित तमाम प्रक्रिया पूरी करने में लगे हुए हैं। इस संस्था के केयर टेकर राकेश कुमार जी का कहना है कि फिलहाल उनकी चिंता पार्थ को लेकर है क्योंकि विदेशी मूल के होने के नाते कोई भी भारतीय परिवार गोद लेने के लिए आगे नहीं आ रहा है लेकिन उन्होंने यह भी बताया कि दिल्ली पुलिस में उच्चपदस्थ एक अधिकारी ने उन्हें आश्वस्त किया है कि अगर पार्थ को कोई भी गोद नहीं लेगा तो वह उसे गोद ले लेंगे तथा भविष्य में वह पार्थ को देश का सर्वोतम एथलीट बनाएंगे।
संस्था के मंत्री पवन बंसल ने बताया कि यहां एकाध कैंप लगाने वाले और फोटो खिंचवाने के लिए तो काफी गैर-सरकारी संस्थाएं और निजी अस्पतालों के लोग आते हैं और अपना प्रोफाइल बढ़ाकर चले जाते हैं किन्तु कोई भी लंबे समय तक मेडिकल सहयोग का आश्वासन नहीं देता, उलटे निजी अस्पतालों में बच्चों को बीमारी की हालात में दाखिला कराने पर वे काफी बेरहमी से पैसे वसूल लेते हैं।
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