धर्मेंद्र कुमार
कॉमनवेल्थ खेलों के शुरू होने में मुश्किल से दो हफ्ते का समय रह गया है। जब भी कोई बड़ा खेल या सांस्कृतिक आयोजन देश में होता है तो लोगों में दिल खोलकर उसमें अपनी भागेदारी निभाने की परंपरा रही है। इस बार मामला उल्टा है। अब ये तो नहीं कहा जा सकता कि सब लोग खेलों के विरोध में ही हैं। लेकिन ये भी सच है कि ज्यादातर लोगों में इसमें अपनी हिस्सेदारी को लेकर कोई खास उत्साह नहीं है।
सबसे पहले विरोध शुरू हुआ खेलों को लेकर हुए भ्रष्टाचार के 'खेल' को लेकर। विपक्ष के नेताओं ने बताया कि पक्ष के नेता अधिकारियों के साथ मिलकर भ्रष्टाचार कर रहे हैं। कौड़ियों के दाम की चीजें महंगे दामों में खरीदकर, कमीशन आदि खाकर पैसे बना रहे हैं। परतें खुलना शुरू हुईं तो खुलती ही चली गईं। एसी, वेंडिंग मशीनें, ट्रेड मिल आदि से लेकर छतरी तक खरीदने में भ्रष्टाचार के आरोप लगे हैं। खेलों से जुड़ी परियोजनाओं में देरी और वहां भी पैसे खाने को लेकर काफी बातें हो रही हैं। हालांकि अभी जांच होगी। उसके बाद पता चलेगा कि कितनी सच्चाई है आरोपों में। लेकिन खेलों से पहले ये ‘खेल’ शुरू हुआ। अभी पिछले हफ्ते तक चरम पर था। अभी कुछ ढीला हुआ है। फिलहाल, ऐसी खबरें भी आकर राहत दे जाती हैं कि तैयारियां लगभग पूरी हैं। जैसा कि खेल मंत्री साहब ने भी कहा था कि घर में लड़की की शादी से पहले सब ठीकठाक हो जाता है। शायद ऐसा ही हो।
एक-दो ठंडी हवा का झोंका आया ही था कि कुछ संगठनों ने अपनी मांगें रखते हुए कहा कि उनकी मांगें पूरी करो नहीं तो वे खेलों को नहीं होने देंगे। इनमें सबसे आगे रहा जाट समुदाय। उन्होंने अपने लिए आरक्षण की मांग को लेकर चलाए जा रहे आंदोलन को इससे जोड़ दिया। अभी सितंबर के आखिरी हफ्ते में अयोध्या के राम मंदिर-बाबरी मस्जिद मसले पर अदालत के फैसले को लेकर भी लोगों ने आशंका व्यक्त की कि इससे खेलों में व्यवधान पड़ सकता है। सांप्रदायिक तनाव बढ़ सकता है। अदालत में फैसले को देरी से देने की अपीलें भी दायर किए जाने की खबरें हैं।
प्रशासन के ऊपर सबसे बड़ा दबाव दिल्ली को चलायमान बनाए रखने का है। इसके लिए उन्हें ट्रैफिक को संभालना है जो मामूली-मामूली वजहों से भी ठहर जाता है। खिलाड़ियों के लिए अलग से लेन रिजर्व रखी जा रही है। इसका फायदा ‘वीआईपी’ को भी मिलेगा। अखबारों में कार पूलिंग करने और सार्वजनिक वाहनों के उपयोग को बढ़ावा देने के विज्ञापन देकर अपीलें की जा रही हैं। इतना ही नहीं स्कूलों आदि की छुट्टियां भी की जा रही हैं ताकि सड़कों पर दबाव कम रहे। छोटी कंपनियों को खेलों के दौरान बंदी के निर्देश दिए जा रहे हैं। इससे इनमें भी कुलबुलाहट होनी शुरू हो गई है।
आर्थिक मोर्चे से और भी कई शिकायतें आना शुरू हुई हैं। भ्रष्टाचार के आरोपों के चलते लोगों में उत्साह गिरा है। इससे पर्यटन को बढ़ावा मिलने की बातें हवा होने लगी हैं। होटलों के आधे से ज्यादा कमरे खाली पड़े हैं। खुद दिल्लीवासी खेलों के दौरान बाहर जाकर छुट्टियां मनाने के कार्यक्रम बना रहे हैं।
सुरक्षा, स्वास्थ्य और मौसम की समस्याएं अलग से मुंह खोले बैठी हैं। सुरक्षा को लेकर कई बड़े खिलाड़ियों ने खेलों में हिस्सा लेने से इनकार कर दिया। बारिश के पानी की सही निकासी न होने की वजह से मच्छर और फिर डेंगू के पैर पसारने से स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं खड़ी हो गईं। ऊपर से इंद्रदेव की टेढ़ी निगाहें। मौसम विभाग ने स्पष्ट रूप से कह दिया है कि पुराने रिकॉर्डों के मुताबिक बारिश तो होनी ही है। अक्टूबर कभी सूखा गया ही नहीं।
इतनी सारी समस्याएं... घर में लड़की की शादी में तो नहीं होती... 'तिल का ताड़ बनाया जा रहा है...' ऐसा आयोजन समिति का कहना है। लेकिन शायद नहीं। तिल का ताड़ खुद उन्हीं का बनाया हुआ है। समय रहते तैयारियां शुरू की गई होतीं तो पता भी नहीं चलता और सारे प्रबंध हो चुके होते। लोगों को परेशानियां उठानी नहीं पड़ती। एक-एक कर सभी फ्लाईओवर बन जाते। सड़कों की मरम्मत हो जाती। देश की अर्थव्यवस्था को खेलों के आयोजन का पूरा लाभ मिलता। जब समय नजदीक आने लगा तो हाथ-पैर फूलने लगे हैं। हड़बड़ी में फैसले किए गए... नतीजा अराजकता का सा महौल। और, इन हड़बड़ियों का फायदा उठाने की जुगत में तैयार बैठे लोगों के लिए पूरा मौका।
खैर, अब जो भी हो ... अंतिम घड़ी आ चुकी है। ले-देकर तैयारियां पूरी होने को हैं। अब खिलाड़ियों की बारी है। देश के लिए खेलना हैं उन्हें। पदक जीतने हैं। उम्मीद करिए ज्यादा से ज्यादा पदक जीत लें। अगर हम चाहें तो इस आयोजन से सबक ले सकते हैं आगे के लिए...।
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