Friday, December 03, 2010

कुछ 'बड़े' व 'बेहतर' घोटालों की नींव अगले साल...

धर्मेंद्र कुमार
साल 2010... हर साल की तरह कुछ अच्छी-बुरी यादें छोड़कर जाने को तैयार है। कॉमनवेल्थ और एशियाड जैसे खेल के मैदानों में भारतीय नौजवानों ने अच्छा प्रदर्शन करके और भारतीय बाजार ने दो साल की मंदी के बाद सही राह पकड़कर जहां अच्छी स्मृतियां छोड़ी वहीं एक के बाद एक कई घोटालों ने पटल पर आकर खुशियों का मजा किरकिरा कर दिया।

साल की शुरुआत में चीनी ने मुंह में मिठास के बजाय कड़वाहट घोली। चीनी के आयात को लेकर कृषि मंत्री शरद पवार पर उंगलियां उठीं। लेकिन उन्होंने किसी भी गड़बड़ी से इनकार किया और बढ़ी कीमतों के लिए बाजार को जिम्मेदार ठहराया। विपक्ष ने संसद के अंदर और बाहर कई दिनों तक जोर लगाया। लेकिन आधा साल गुजरते-गुजरते चीनी के दाम फिर से गिरने लगे और लोग 'शांत' होने लगे। हां... इस दौरान कई लोग बहुत तेजी से अमीर हुए, ऐसा माना जाता है। बढ़ी कीमतों की असली वजह क्या थी... अब शायद न किसी को याद है और न जानने की जरूरत है।

आधा साल गुजरने के बाद सबका ध्यान कॉमनवेल्थ खेलों की ओर आ टिका। देश की राजधानी में कई प्रोजेक्ट शुरू किए गए। तमाम फ्लाईओवर और सड़कों का निर्माण इस दौरान अपने अंतिम चरण में पहुंचा। खेलों से जुड़ी व्यवस्थाओं को संवारने में जमकर लापरवाहियां हुईं। धांधलियों के आरोप लगे। ये आरोप मंत्रियों पर लगे, खेल समिति पर भी लगे और अधिकारियों पर भी। केंद्र सरकार और दिल्ली राज्य सरकार की भी अच्छी छीछालेदारी हुई। इस दौरान एक-दो बार मेट्रो रेल की निर्माणाधीन लाइनों पर दुर्घटना हुईं और फुट ओवर ब्रिज भी गिरा। खैर, जैसे-तैसे खेल खत्म हुए और अव्यवस्थाओं के जिम्मेदार लोगों की 'खोज' शुरू हुई। एकदूसरे पर आरोप लगाने के बाद जांच समिति बिठा दी गई। जांच समिति पर भी सवाल उठे।

'दोषियों को बख्शा नहीं जाएगा' इस आश्वासन के साथ जांच जारी है। लेकिन अब साल का अंत होते-होते मामला कुछ ढीला सा पड़ता जा रहा है।

साल के दूसरे हिस्से में घोटालों के कई दूसरे मामले उभर कर आए। इनमें आदर्श सोसायटी मामला, कर्नाटक का जमीन मामला और सबका 'बाप' 2जी स्पेक्ट्रम आवंटन घोटाला रहा।

आदर्श सोसायटी घोटाला इसलिए आश्चर्यचकित करने वाला रहा क्योंकि इसमें नेताओं और मंत्रियों के अलावा सेना के कई बड़े अफसरों के दामन भी दागदार लगे। करगिल के शहीदों के लिए जो फ्लैट दिए जाने थे वे नेताओं और सेना के कुछ बड़े अधिकारियों के पास पहुंच गए। हल्ला मचा तो मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण को इस्तीफा देना पड़ा। उनकी दिवंगत 'सास' सहित कई दूसरे रिश्तेदारों के नाम पर भी फ्लैट इस सोसायटी में पंजीकृत थे। जांच समिति इस मामले की भी जांच कर रही है।

इन सब घोटालों में अब तक कांग्रेस या उसके सहयोगी दलों के नेताओं पर आरोप लग रहे थे। लेकिन 'नेता-नेता मौसेरे भाई' हैं... ये सिद्ध किया कर्नाटक के जमीन आवंटन ने। प्रदेश में भाजपा सरकार के मुखिया येदियुरप्पा के लगभग हर रिश्तेदार के नाम सरकारी जमीन का मालिकाना हक निकल आया। इससे पहले के घोटालों पर जहां कांग्रेस की छीछालेदारी भाजपा सहित विपक्ष कर रहा था तो इस बार बारी कांग्रेस की थी। बात यहां तक पहुंची कि येदियुरप्पा की सरकार खतरे में पड़ गई। हालांकि भाजपा ने येदियुरप्पा को अभय दान दे दिया और उनकी सरकार बच गई। लेकिन भाजपा संसद में जिस भ्रष्टाचार के मुद्दे पर सरकार की नाक में दम किए हुए थी, उसी मुद्दे पर उसे अपना चेहरा छुपाना मुश्किल हो गया। हमेशा की तरह जांच यहां भी जारी है।

साल खत्म होते-होते सभी घोटालों का 'बाप' उभरकर आया। ये था 2जी स्पेक्ट्रम मामला। पद से हटा दिए दूरसंचार मंत्री ए. राजा पर टेलीफोन कंपनियों को स्पेक्ट्रम आवंटन में पारदर्शिता न बरतने का गंभीर आरोप लगा। उनपर आरोप लगा कि उन्होंने बहुत सस्ते दामों पर ये स्पेक्ट्रम टेलीफोन कंपनियों को देकर देश को चूना लगाने का काम किया है। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने भी माना कि जरूरी एहतियात नहीं बरते गए। लेकिन उनकी नाक के नीचे ये सब होता रहा।

हमारे देश में आजादी के बाद से ही घोटालों का एक लंबा इतिहास रहा है। कुछ दिन मामला गर्म रहता है। बाद में जांच समितियों के हाथों में मामला पहुंचने के बाद यकायक सब कुछ ठंडा पड़ने लगता है। लोगों की स्मृति कम होने की बात कही जाती रही है। कुछ हद तक यह सही भी है। इस साल के ताजा-ताजा कई घोटाले अपनी 'चमक' खोने लगे हैं। नए साल के चढ़ते खुमार के सहारे इन सभी घोटालों को भी भुला दिया जाएगा। हो सकता है अगले साल हम कुछ और 'बड़े' व 'बेहतर' घोटालों की नींव रखें।

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