11 साल गुजर गए... आज मैं याद कर रहा हूं सात-आठ मार्च 2000 की वो शाम... उस वक्त मेरे दिमाग में कहीं भी यह नहीं था कि मेरे अगले 11 साल बहुत लंबे बीतने वाले हैं। इन 11 साल में वह सब कुछ होगा जिसके बारे में मैंने कल्पना भी नहीं की है।
अपनी शादी का कार्ड, अपनी शादी की तैयारी, अपनी बारात, बारात के रश्मि के घर पहुंचने के बाद जबर्दस्त स्वागत, शानदार डिनर, बुलाए गए लगभग सभी मेहमान... सबकुछ एक सपने जैसा...
बीते 11 सालों में मेरी जिंदगी में कई बेहतरीन चीजें हुईं... आज के दिन रश्मि हमारे घर में आई, मैंने पत्रकारिता को करियर के रूप में अपनाया, उरु हमारी जिंदगी में आई और आगरा में पत्रकारिता के शुरुआती दिनों के संघर्ष का स्वाद, जो अब बहुत शानदार लगता है...
नवभारत टाइम्स में मौका मिलने के बाद दिल्ली आगमन और साल 2006 में अपना नया घर... यहां तक सब बिल्कुल ठीक चल रहा था और ऐसा लग रहा था कि जिंदगी कितनी तेजी से कटती चली जाती है।
साल 2007 के शुरू होते-होते अपने नए घर को सजाने को दौर शुरू हुआ... हम दोनों पति-पत्नी या यह कहिए कि तीनों, उरु भी, ने पिछले छह साल के दौरान जो इच्छाएं दबाए रखी थीं... उन्हें आकार देना शुरू किया। रोहिणी और रुक्मणि हमारे जीवन में आने वाली थीं...
26 जून 2007 को प्रसव पीड़ा शुरू होने के बाद, मैने रश्मि को अस्पताल में भर्ती किया और ऑपरेशन थिएटर के बाहर अपने भांजे रजत के साथ बेसब्री के साथ रोहिणी और रुक्मणि का इंतजार करने लगा। करीब आधे घंटे बाद एक-एक कर रोहिणी और रुक्मणि थिएटर से बाहर आईं... और मेरे होठों पर अपनी अभी तक की जिंदगी की आखिरी मुस्कान आई...।
तब मुझे नहीं मालूम था कि अब मैं हंसना भूलने वाला हूं... मुझे ऑपरेशन थिएटर के अंदर से अफरा-तफरी की सी आवाजें आने लगीं... रश्मि की तबियत खराब होने लगी थी...।
थोड़ी देर बाद दो डॉक्टर बाहर आए और मुझे बताया कि रश्मि की तबियत बिगड़ रही है, उसे पोस्ट पैटम हैमरेज (पीपीएच) हुआ है और बड़े अस्पताल में शिफ्ट करना होगा।
उसके बाद अब मुझे सिर्फ यह याद है कि मैं सिर्फ रो रहा था... और मेरे परिजन आगे की कार्रवाइयों में जुट गए।
फोर्टिस अस्पताल में भर्ती करने के बाद 23 घंटे रश्मि ने संघर्ष किया और सुबह सात बजे डॉक्टरों ने हाथ खड़े कर दिए...
इस दिन, मेरी कई धारणाएं बदल गईं... मेरा व्यक्तित्व बदल गया... कई चीजों को देखने का नजरिया बदल गया...
अभी, रश्मि को साथ छोड़े तीन साल से ज्यादा हो गए हैं। इन तीन सालों को गुजारने में मुझे बहुत वक्त लगा है। अब मैं सोचता हूं कि जीवन कितना लंबा होता है... और आपको उसे जीना ही होता है... कभी अपने लिए, कभी अपने से किसी भी तरह जुड़े दूसरे लोगों के लिए...
अपनी शादी का कार्ड, अपनी शादी की तैयारी, अपनी बारात, बारात के रश्मि के घर पहुंचने के बाद जबर्दस्त स्वागत, शानदार डिनर, बुलाए गए लगभग सभी मेहमान... सबकुछ एक सपने जैसा...
बीते 11 सालों में मेरी जिंदगी में कई बेहतरीन चीजें हुईं... आज के दिन रश्मि हमारे घर में आई, मैंने पत्रकारिता को करियर के रूप में अपनाया, उरु हमारी जिंदगी में आई और आगरा में पत्रकारिता के शुरुआती दिनों के संघर्ष का स्वाद, जो अब बहुत शानदार लगता है...
नवभारत टाइम्स में मौका मिलने के बाद दिल्ली आगमन और साल 2006 में अपना नया घर... यहां तक सब बिल्कुल ठीक चल रहा था और ऐसा लग रहा था कि जिंदगी कितनी तेजी से कटती चली जाती है।
साल 2007 के शुरू होते-होते अपने नए घर को सजाने को दौर शुरू हुआ... हम दोनों पति-पत्नी या यह कहिए कि तीनों, उरु भी, ने पिछले छह साल के दौरान जो इच्छाएं दबाए रखी थीं... उन्हें आकार देना शुरू किया। रोहिणी और रुक्मणि हमारे जीवन में आने वाली थीं...
26 जून 2007 को प्रसव पीड़ा शुरू होने के बाद, मैने रश्मि को अस्पताल में भर्ती किया और ऑपरेशन थिएटर के बाहर अपने भांजे रजत के साथ बेसब्री के साथ रोहिणी और रुक्मणि का इंतजार करने लगा। करीब आधे घंटे बाद एक-एक कर रोहिणी और रुक्मणि थिएटर से बाहर आईं... और मेरे होठों पर अपनी अभी तक की जिंदगी की आखिरी मुस्कान आई...।
तब मुझे नहीं मालूम था कि अब मैं हंसना भूलने वाला हूं... मुझे ऑपरेशन थिएटर के अंदर से अफरा-तफरी की सी आवाजें आने लगीं... रश्मि की तबियत खराब होने लगी थी...।
थोड़ी देर बाद दो डॉक्टर बाहर आए और मुझे बताया कि रश्मि की तबियत बिगड़ रही है, उसे पोस्ट पैटम हैमरेज (पीपीएच) हुआ है और बड़े अस्पताल में शिफ्ट करना होगा।
उसके बाद अब मुझे सिर्फ यह याद है कि मैं सिर्फ रो रहा था... और मेरे परिजन आगे की कार्रवाइयों में जुट गए।
फोर्टिस अस्पताल में भर्ती करने के बाद 23 घंटे रश्मि ने संघर्ष किया और सुबह सात बजे डॉक्टरों ने हाथ खड़े कर दिए...
इस दिन, मेरी कई धारणाएं बदल गईं... मेरा व्यक्तित्व बदल गया... कई चीजों को देखने का नजरिया बदल गया...
अभी, रश्मि को साथ छोड़े तीन साल से ज्यादा हो गए हैं। इन तीन सालों को गुजारने में मुझे बहुत वक्त लगा है। अब मैं सोचता हूं कि जीवन कितना लंबा होता है... और आपको उसे जीना ही होता है... कभी अपने लिए, कभी अपने से किसी भी तरह जुड़े दूसरे लोगों के लिए...
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