Friday, May 30, 2014

‘पेड न्यूज’ जैसी दुश्वारियों से निजात दिला सकती है ऑनलाइन पत्रकारिता

धर्मेंद्र कुमार

ठीक 188 साल पहले पं. जुगल किशोर शुक्ल ने वर्ष 1826 में जब पहला हिन्दी अखबार ‘उदन्त मार्तण्ड’ निकाला तो हिंदी पत्रकारिता का मतलब सिर्फ ‘अखबार’ ही रहा होगा... ऐसा शायद किसी ने न सोचा होगा कि आने वाले युग में अखबार के अलावा दूसरे कई माध्यम संवाद संप्रेषण करने के लिए अपनी जगह बनाएंगे।

अखबार के बाद रेडियो और उसके बाद टेलीविजन के आगमन ने लोगों के सामने समाचार जानने के लिए नए माध्यम मुहैया कराए। बीते करीब 20 सालों में ऑनलाइन माध्यम तेजी से उभरा है। साथ ही हिंदी समाचार प्रस्तुत करने वाली कई समाचार वेबसाइट भी...।

एक ऐसा माध्यम जिसने अखबार, टीवी और रेडियो आदि सभी माध्यमों के गुणों को अपने में समाहित कर लिया। इंटरनेट पर उपलब्ध वेबसाइट के जरिए रेडियो को सुना जा सकता है, अखबार पढ़ा जा सकता है और लाइव टीवी देखा जा सकता है। हालांकि, यह अतिशयोक्ति होगा लेकिन पत्रकारिता में एक वर्ग तो यह भी मानता है कि ऑनलाइन माध्यम के बाद दूसरे मीडिया साधनों की जरूरत ही नहीं रहेगी। सभी पाठक वर्ग एक इसी माध्यम के जरिए ही सभी साधनों के समाचार प्राप्त कर सकेंगे।

ऑनलाइन पत्रकारिता की मदद से सबसे बड़ा लाभ यह हो रहा है कि समाचार जानने के लिए दो ढाई हजार अखबार, चार-पांच सौ टीवी चैनल या दो-तीन सौ रेडियो केंद्रों पर निर्भर रहने की जरूरत नहीं है। यह माध्यम हर नागरिक को हिंदी सहित लगभग सभी भाषाओं में ‘संपादक’ के रूप में काम करने का मौका देता है। समाचार वेबसाइट पर मौजूद सामग्री पर टिप्पणी करके, यहां मौजूद सामूहिक वाद-विवाद में भाग लेकर या सोशल मीडिया के जरिए संदेशों का आदान-प्रदान कर समाचार संवहन किया जा रहा है...

‘मत’ बनाए जा रहे हैं। इससे हाल के दिनों में पनपी ‘पेड न्यूज’ जैसी दुश्वारियों से भी निजात मिलना आसान होगा। आदर्श स्थित में जब हर व्यक्ति ‘संपादक’ होगा तो कौन किसको ‘खरीदेगा’ या खरीदने का प्रयास कर सकेगा। हर नागरिक के लिए खुले माहौल में पूरी स्वतंत्रता के साथ विचार अभिव्यक्ति के लिए इससे बेहतर माध्यम हाल-फिलहाल में कोई नहीं दिखता।

हिंदी टीवी चैनल और अखबारों की ‘प्राकृतिक’ और ‘भाषागत’ आक्रामकता को देखते हुए गाहे-बगाहे मीडिया के गला घोंटने की बातें चलती रहती हैं। सेंसरशिप के बहाने तथ्यों को सही तरह से पेश किए जाने से रोकने के प्रयासों के आरोप लगते रहते हैं। लेकिन, ऑनलाइन माध्यम में यह बहुत दुष्कर कार्य है। पिछली सरकार में कई ऐसे प्रयास हुए जब लगा कि अभिव्यक्ति के इस माध्यम को सेंसर करने की कोशिश की जा रही है। लेकिन, तकनीक के अजीब चरित्र के चलते वे कोशिशें न केवल असफल रहीं बल्कि हास्यास्पद भी दिखीं। 

देश में हिंदी भाषी लोगों की बहुतायत और शिक्षा के स्तर में तेजी से हुई बढ़ोतरी के चलते इंटरनेट एक सशक्त माध्यम बनकर उभरा है। हाल ही में संपन्न हुए लोकसभा चुनावों में विजयी गठबंधन की जीत में इस माध्यम ने अहम भूमिका निभाई और इस घटनाक्रम के चलते ‘परास्त’ दलों को अपनी रणनीति में ऑनलाइन माध्यम का ‘समुचित’ प्रयोग न कर पाने के कारणों को तलाश करने के लिए विवश कर दिया। इससे पहले, दिल्ली के विधानसभा चुनावों में आम आदमी पार्टी के उल्लेखनीय प्रदर्शन की एक वजह इस माध्यम के जरिए संवाद करना भी था।

करीब 10 साल पहले निश्चित रूप से ऑनलाइन माध्यम को इतनी गंभीरता से नहीं लिया जाता था... यहां मौजूद तथ्यों की प्रामाणिकता पर सवाल उठाए जाते थे... लेकिन आज हालात बदल गए हैं। अब आप इसकी अवहेलना नहीं कर सकते।

देश और दुनिया का युवा वर्ग इस माध्यम से अपनी भाषा में राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक संभाषणों में हिस्सा ले रहा है... अपनी बात कह रहा है... और युवाओं की हिस्सेदारी ही सामुदायिक भविष्य को तय करती है...।

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