Thursday, June 10, 2010

तो हो जाएगी सब जगह बारिश...

धर्मेद्र कुमार
'बारिश वक्त से पहले ही हो रही है...' 'गर्मी वक्त से पहले ही जा रही है...' 'इस बार खट्टे रहेंगे आम...' 'ठंड के दिनों में ही पक रहे हैं आम...' ऐसी दो-चार कुछ और खबरें भी इस साल की शुरुआत में सुनने को मिलीं। इन खबरों पर पर्यावरणविदों के विचार और चिंताएं भी सुनीं। पिछले साल भी कुछ ऐसा ही माहौल था। इस साल भी... और अगले साल भी कुछ दूसरी ऐसी ही खबरें कुछ दूसरे 'फलों' और 'वजहों' के बारे में सुनने को मिल सकती हैं।

पिछले साल इन खबरों पर कोई खास तबज्जो नहीं दी गई... शायद इस बार भी नहीं दी जा रही है... और इस बात की पूरी संभावना है कि अगले साल भी ऐसा ही कुछ... तथा 'अद्भुत' खबरों के रूप में इन खबरों को पेश कर दिया जाएगा।

अटल बिहारी बाजपेयी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार के कार्यकाल के दौरान नदियों को आपस में जोड़ने के बारे में कुछ प्रस्ताव आए थे। नदियों को नहरों के द्वारा जोड़ा जाना था... और इसकी वजह थी बाढ़ जैसी आपदाओं से बचाव। इसके पक्ष और विपक्ष में कई तरह के मत सामने आए। हालांकि अब इस प्रस्ताव पर कोई काम नहीं हो रहा है लेकिन इसका एक समझदारीभरा उपयोग शुरू में दी गई खबरों की 'हेडिंग' को सुनने से बचने में किया जा सकता है।

पंजाब में सुल्तानपुर के निकट हरिके बराज से निकाली गई करीब 650 किमी लंबी इंदिरा गांधी नहर के प्रयोग से प्रेरणा ली जा सकती है। पंजाब, हरियाणा के कुछ इलाकों तथा मुख्यतया राजस्थान के जैसलमेर से होकर जाने वाली इस नहर की वजह से कई मौसमी परिवर्तन देखने को मिले हैं। नहर के दोनों ओर बड़े पैमाने पर वृक्षारोपण किया गया है। इससे न केवल वहां बारिश के रंग-ढंग बदल गए हैं बल्कि दैनिक जीवन में वहां खुशहाली भी बढ़ी है। जैसलमेर का यह इलाका अपनी रेगिस्तानी प्रकृति के लिए मशहूर है। लेकिन अब नजारा बदल गया है। इस नहर के बनने से पिछले दो साल के दौरान मानसून के रास्ते में बदलाव देखा गया है। सघन हरियाली की ओर मानसून आकर्षित हुआ है और इस वजह से उत्तरी भारत के इलाकों में बारिश कम दर्ज की गई है। जबकि इंदिरा गांधी नहर जिन इलाकों से होकर गुजरती है वहां बारिश में बढ़ोतरी देखी गई है। इतना ही नहीं पश्चिमी उत्तर प्रदेश के इलाकों में कम बारिश के लिए कुछ पर्यावरणविद् इस नहर को 'जिम्मेदार' ठहरा रहे हैं।

जहां पहले बारिश नहीं होती थी या कम होती थी वहां अब खूब और समय से पहले ही हो रही है। और, मानसून के उस ओर दिशा ले लेने से जहां पूर्व में ज्यादा बारिश दर्ज की जा रही थी वहां अब यह कुछ कम हो गई है। मौसम में बदलाव की वजह कई हैं। लेकिन यह भी एक प्रमुख वजह है।

मौसम विभाग के आकड़े देखें तो यह नजर आता है। रेगिस्तानी जैसलमेर में इंदिरा गांधी नहर के चलते इस इलाके के करीब 6800 वर्ग किमी क्षेत्रफल में सिंचाई के साधन बढ़े, हरियाली बढ़ी, खासकर नहर के किनारे किए गए वृक्षारोपण से... इससे मानसून का खिंचाव उधर बढ़ा। इसे अच्छा माना जा सकता है। इस प्रयोग को देशभर में दोहराया जा सकता है। सब जगह समय से बारिश हो सकती है। सरकार को जरूरत है इस ओर ध्यान देने की... इस मॉडल को अपनाने की। इसको लेकर कुछ पर्यावरणविदों ने चिंता जताई थी कि इससे मानसून गड़बड़ा सकता है। वे सही हो सकते हैं... लेकिन नदियों, नहरों और तालाबों को जोड़ने के लिए बहुत ज्यादा आक्रामक रणनीति बनाने की भी जरूरत नहीं है। हम कह सकते हैं कि लाठी भी न टूटे और सांप भी मर जाए। इंदिरा गांधी नहर का प्रयोग कम से कम पिछले दो साल में सही साबित हुआ है... सही तरह से संतुलित योजना बनाई जानी चाहिए और मौसम की बदली चाल से प्रभावित क्षेत्रों पर खास ध्यान देते हुए ये प्रयोग दोहराए जाने चाहिए।

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