21 नवंबर की सुबह अजमल कसाब को 'यकायक' फांसी पर लटका देने के बाद सबकी जुबान पर यह सवाल उठ खड़ा हुआ था कि अब अफजल गुरु का यह अंजाम कब होगा...?
तब, राजनीतिक हल्कों में यह बात उठने लगी थी कि साल 2002 में ही अदालती फैसला आ जाने के बावजूद उसकी फांसी में देरी के 'राजनीतिक कारण' हैं। हालांकि यह अच्छी बात है कि देश की सरकार आतंकियों के प्रति कड़ा रुख अपनाए और दुनिया में एक अच्छा संकेत दे। मुस्लिमविरोधी छवि के लिए जाने जाने वाले संगठन इस मामले को उछालते भी रहे। मुस्लिम समुदाय की नाराजगी मोल नहीं लेने के भी आरोप लगे। लेकिन सरकार द्वारा तय किए गए समय पर अब भी अब सवाल खड़े किए जा रहे हैं।
केवल दो-ढाई महीने में ही अफजल गुरु का 'नंबर' आ गया। बेशक राष्ट्रपति को फैसला लेना होता है लेकिन इससे मिलने वाले सियासी संकेतों से एक तबके की नजर हट नहीं पा रही है। सरकार की अचानक इस 'तेजी' के पीछे क्या कोई कारण हो सकता है... इसपर भी कई बातें सूत्रों के मुंह से सुनने को लगातार मिल रही हैं।
साल 2014 के चुनावों की तैयारियों में सभी दल जुट चुके हैं। बीजेपी अपना हिंदुत्व कार्ड खेलने की तैयारी में जुट गई है। राजनाथ सिंह का अध्यक्ष पद संभालने के बाद पुन: राम मंदिर की बात शुरू कर देना और नरेंद्र मोदी टाइप 'हिंदुत्व' की वकालत में आगे आ जाने से कांग्रेस और उसके सहयोगियों के कान खड़े होना लाजिमी है।
जहां बीजेपी कंधार मामले को भूलकर आतंकियों के खिलाफ अपने को मुखर दिखाना चाहती है वहीं कांग्रेस भी अपनेआपको यह जताना चाहती प्रतीत हो रही है कि वह आतंकवाद के खिलाफ 'सॉफ्ट' नहीं है।
समय-समय पर कांग्रेस अपनी यह छटपटाहट 'भगवा आतंकवाद' का नाम लेकर जाहिर करती भी रहती है।
हालांकि तब वह 'तेजी' दिखाने में रुचि नहीं दर्शाती। लेकिन गाहे-बगाहे उसके नेता मुंह जुबानी त्वरित कार्रवाई की बात करते रहते हैं।
संदेह जताया जा रहा है कि अदालत से साल 2002 में ही सजा पर मुहर लग जाने के बाद इसपर अमल करने में करीब 10 साल का समय लगने के पीछे राजनीति एक कारक के रूप में जरूर रही होगी।
विपक्ष सरकार पर मुस्लिम तुष्टीकरण का आरोप लगाता रहा है सरकार फांसी के लिए सही समय सुनिश्चित करने में जुटी थी। कहा जा सकता है कि इसके पीछ सतर्कता भी हो सकती है। लेकिन यकायक तेजी खासकर चुनावों से ठीक एक साल पहले ऐसी कार्रवाई सवाल खड़े कर रही है।
हालांकि ये आशंकाएं निर्मूल ही हैं क्योंकि भारतीय मुस्लिम समाज का एक बड़ा तबका आतंकवाद के बिल्कुल खिलाफ खड़ा है। केवल कश्मीर में ही एक छोटा-सा गुट भारत विरोधी है और वह भी इसलिए क्योंकि उन्हें पाकिस्तान से इसके लिए मदद मिलती है। लेकिन सत्ता पर सवार लोगों की समझ में यह बात कितनी आती है... इसमें संदेह है।
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