Friday, August 29, 2014

जन-धन योजना के मायने...


धर्मेंद्र कुमार

जन-धन योजना कितनी सफल या असफल होगी, यह कहना तो मुश्किल है... लेकिन इससे एक बड़ा फायदा यह होने जा रहा है कि बैंकिंग हर आदमी या कहें कि हर परिवार तक पहुंच जाएगी।

एक बड़ी जनसंख्या होने के चलते बड़ी मात्रा में बचत खाते खुलने से एक बड़ा कोष बन सकेगा जिससे अधिक धन भारतीय बाजार में प्रवाहित होगा। इससे धन संयोजन करने के मामले में राज्यों की केंद्र पर निर्भरता थोड़ी सी कम होगी। यह ठीक एक-एक लकड़ी को इकट्ठा कर गट्ठर बनाने वाली बात है।

इस कदम को मीडिया में मिली अधिक जगह को देखते हुए इसे अति उत्साह कह सकते हैं लेकिन पता नहीं पूर्व में ऐसा विचार किसी अन्य 'अर्थशास्त्री' के दिमाग में क्यों नहीं आया...। ध्यान रहे, पूर्व यूपीए सरकार के दौरान प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया देश के ही नहीं बल्कि विश्व के जाने-माने अर्थशास्त्री रहे हैं। लेकिन, हो सकता है कि जमीन से ज्यादा जुड़ाव न हो पाने के चलते उनके दिमाग में यह विचार न आ पाया हो...।

इस अभियान के तहत खोले जा रहे एक बचत खाते में कम से कम 100 रुपये भी रहें तो एक बड़ी धनराशि जुटाई जा सकती है... इसका एक परिणाम तो यह होगा कि इससे बाजार में तरलता बढ़ेगी जिससे सरकारी घाटे में कमी लाई जा सकती है। यानी, नए नोट कम छापने पड़ेंगे...। हालांकि, इससे मामूली मुद्रास्फीति बढ़ेगी लेकिन उससे ज्यादा महत्वपूर्ण यह है कि सुप्तावस्था में पड़ी धनराशि दैनिक संवहन में आएगी तथा अधिक लोग अर्थव्यवस्था में अपनी सहभागिता सुनिश्चित कर पाएंगे।

यह दरअसल एक 'सुधार' ही है। इससे सिर्फ फायदा ही हो सकता है। किसी बड़े नुकसान की आशंका कम ही लगती है।

देश में करीब 10 करोड़ परिवार ऐसे हैं जो बैंकिंग व्यवस्था के हिस्सेदार नहीं हैं। ध्यान रहे, करीब इतने ही लोग देश में इंटरनेट का प्रयोग करते हैं और इनमें से ज्यादातर लोग बैंकिंग से जुड़े हुए हैं। इससे अनुमान लगाया जा सकता है इस क्षेत्र में कितनी विषमता है। पहले ही दिन करीब डेढ़ करोड़ लोगों के खाते खोल दिए गए हैं। इस आंकड़े को देखकर लगता है कि बाकी परिवारों को भी अर्थव्यवस्था के मुख्य धारे में लाने का काम ज्यादा दुष्कर नहीं है।

योजना बन गई है... शुरू हो गई है... अब यह कहां तक जाएगी...? यह एक विचारणीय सवाल है। इसके कुशल संचालन पर ही इसकी सफलता टिकी हुई है। जिन लक्ष्यों को प्राप्त करने की कोशिश इस योजना के जरिए की जा रही है उन्हें पाना तभी संभव हो सकेगा।
 
इस अभियान के साथ बीमा और ओवरड्राफ्ट की सुविधाएं देने की भी योजनाएं हैं। हालांकि, ये योजनाएं ठीक वैसे ही हैं जैसे एक टेलीफोन कनेक्शन के साथ कुछ टॉकटाइम फ्री...। लेकिन इन योजनाओं को सही तरीके से चलाने के लिए बैंकिंग ढांचागत व्यवस्थाओं को और ज्यादा मजबूत करने की जरूरत पड़ेगी। सरकार इसे सुनिश्चित करने के लिए आगे क्या काम करने वाली है, इसे भी देखे जाने की जरूरत है।

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