Monday, April 06, 2015

'गाली-गलौज नहीं करूंगा तो...'

कल मेरे एक सहयोगी पूछ रहे थे कि नेताओं से अनाधिकारिक रूप से बात करो तो वे कितने 'जहीन' और 'समझदार' नजर आते हैं लेकिन मंच पर जाते ही उन्हें न जाने क्या हो जाता है... पहले भी एक बार किसी ने पूछा था और एक बार फारुख शेख ने भी ऐसा ही कहा था। उसी संदर्भ में यह बात याद आई है।

...अलीगढ़ में एक बड़े दलित नेता थे... अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के विधि विभाग में प्रोफेसर...। इंदिरा गांधी के 'कड़े' आलोचक... खूब 'गालियां' देने वाले...। बात दिल्ली तक पहुंची तो इंदिरा गांधी ने उन्हें बुलवाया और कहा कि हम तो तुम्हें 'मंत्री' बनाना चाहते हैं लेकिन क्या करें तुम 'गाली-गलौज' बहुत करते हो...।

इसपर वह बोले कि कोई बात नहीं, गालियां देना 'बंद' कर देंगे। इंदिरा जी मुस्करा गईं। थोड़ी देर दूसरी बातें चलीं। जब विदाई का वक्त आया उन्होंने पूछ ही लिया कि आखिर तुम इतना गाली-गलौज करते क्यों हो..? तो जवाब आया कि दलितों का नेता हूं, गाली-गलौज नहीं करूंगा तो 'चमर्रे' मेरे पीछे कैसे लगेंगे। यह बात अलग है कि वह खुद भी इसी जाति के थे...।

बाद में वह तत्कालीन सरकार में राज्य मंत्री बने। साल 1977 में जब जनता पार्टी की सरकार बनी तो वह 'वहां' चले गए। बाद में उनका 'अंत' बहुत दयनीय स्थिति में हुआ।

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