पत्रकार कभी 'रिटायर' नहीं होते...। लाइफटाइम 'जॉब' है यह। रिटायर वे 'नौकरी' से हो जाते हैं और उस 'रिटायरमेंट' के बाद ही उन्हें सच्चे 'ज्ञान' की प्राप्ति होती है।
जितना समय वे 'नौकरी' करते हैं 'पत्रकारिता' शायद कर ही नहीं पाते। वास्तव में पत्रकारों का काम 'नौकरी' करना या मांगना है ही नहीं। नौकरियां तो दूसरे सेक्टर में कई गुना ज्यादा 'बेहतर' हैं..। यह समाज, देश और दुनिया की सेवा का काम है। यहां धन की 'इच्छा' नहीं करनी चाहिए। आपके काम और समर्पण के एवज में धन 'स्वत:' आता है, शायद...
दरअसल, पत्रकार कभी 'नौकरी' कर ही नहीं सकता। जितने भी 'बड़े' पत्रकार हुए हैं उनमें से कभी किसी ने कोई 'नौकरी' नहीं की। 'निराला' सबसे बड़े उदाहरण हैं। पत्रकारिता का नुकसान ही तब से शुरू हुआ है जबसे पत्रकार 'नौकरी' ढूढने लगे और उन्हें 'मिलने' भी लगी।
सबसे बड़ी समस्या यह है कि खुद पत्रकार पत्रकारिता को 'मजदूरी' की तरह करना चाहते हैं जो हो ही नहीं सकता...। पत्रकार तो 'देश की संपत्ति' होते हैं और उन्हें देश 'देता' है। जो लोग मीडिया के क्षेत्र में नौकरी ढूंढ रहे हैं वे एक 'बड़ी' गलती कर रहे हैं। वे दरअसल 'मजदूर', 'नौकरीपेशा' या 'अंग्रेजों के जमाने के क्लर्क' बनने की कोशिश कर रहे हैं। उनका 'रेट' बाजार तय करता है जो 'वही' है जो उन्हें 'मिल' रहा है...।
अब 'असली' पत्रकारों की यह जिम्मेदारी है कि यह 'बात' वे पत्रकार बनने की उम्मीद पालने वाले नए रंगरूटों को समझा दैं। सब समझ जाएंगे... बड़े 'समझदार' हैं सब...।
जितना समय वे 'नौकरी' करते हैं 'पत्रकारिता' शायद कर ही नहीं पाते। वास्तव में पत्रकारों का काम 'नौकरी' करना या मांगना है ही नहीं। नौकरियां तो दूसरे सेक्टर में कई गुना ज्यादा 'बेहतर' हैं..। यह समाज, देश और दुनिया की सेवा का काम है। यहां धन की 'इच्छा' नहीं करनी चाहिए। आपके काम और समर्पण के एवज में धन 'स्वत:' आता है, शायद...
दरअसल, पत्रकार कभी 'नौकरी' कर ही नहीं सकता। जितने भी 'बड़े' पत्रकार हुए हैं उनमें से कभी किसी ने कोई 'नौकरी' नहीं की। 'निराला' सबसे बड़े उदाहरण हैं। पत्रकारिता का नुकसान ही तब से शुरू हुआ है जबसे पत्रकार 'नौकरी' ढूढने लगे और उन्हें 'मिलने' भी लगी।
सबसे बड़ी समस्या यह है कि खुद पत्रकार पत्रकारिता को 'मजदूरी' की तरह करना चाहते हैं जो हो ही नहीं सकता...। पत्रकार तो 'देश की संपत्ति' होते हैं और उन्हें देश 'देता' है। जो लोग मीडिया के क्षेत्र में नौकरी ढूंढ रहे हैं वे एक 'बड़ी' गलती कर रहे हैं। वे दरअसल 'मजदूर', 'नौकरीपेशा' या 'अंग्रेजों के जमाने के क्लर्क' बनने की कोशिश कर रहे हैं। उनका 'रेट' बाजार तय करता है जो 'वही' है जो उन्हें 'मिल' रहा है...।
अब 'असली' पत्रकारों की यह जिम्मेदारी है कि यह 'बात' वे पत्रकार बनने की उम्मीद पालने वाले नए रंगरूटों को समझा दैं। सब समझ जाएंगे... बड़े 'समझदार' हैं सब...।
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