Saturday, November 01, 2008

कंपनियों में तब्दील होते राजनीतिक दल

धर्मेंद्र कुमार
राजनीतिक दलों की शक्लें बदलने लगी हैं। गांधी-नेहरू के जमाने में समाज सेवा को प्राथमिकता सूची में रखने का प्रयास करने वाले राजनीतिक दलों की प्राथमिकता अब कम से कम समाजसेवा तो नहीं रही है, बल्कि यह रहती है कि कैसे उसे एक कंपनी का रूप देकर एक लाभ कमाने वाला प्रतिष्ठान बना डालें। सबसे दु्खदायी तथ्य यह है कि कोई भी दल इससे अछूता नहीं... चाहे वह सत्तारूढ़ कांग्रेस हो, उसकी सहयोगी समाजवादी पार्टी या अन्य छोटे क्षेत्रीय दल हों और या विपक्ष में बैठी भाजपा, वामदल या बसपा... चलिए, एक तरफ से नजर डालते चलते हैं।

सत्ता पक्ष की बात करें तो कांग्रेस ने कोई कसर नहीं छोड़ रखी है पार्टी को एक व्यावसायिक कंपनी बना देने में। अब चाहे वह गांधी टोपी को कैप में बदलकर 'अच्छा लुक' देने का प्रयास हो या पूरे शहर में 'बैलेंस शीट' जैसे बड़े-बड़े होर्डिंग लगाकर लोगों को अपनी उपलब्धियां गिनाना हो। कांग्रेस के आयकर विभाग को दिए पिछले तीन साल के हिसाब-किताब को देखा जाए तो पार्टी की परिसंपत्तियों में 28.5 फीसदी सालाना की वृद्धि हुई है। देश की आर्थिक विकास दर से इसकी तुलना करें तो पार्टी के कोष में तीन गुना ज्यादा की वृद्धि हुई। साल 2003 में कांग्रेस ने 69.56 करोड़ रुपये, 2004 में 153 करोड़ रुपये और साल 2005 में 227 करोड़ रुपयों की 'उगाही' की।

यही नहीं, अपनी व्यावसायिक गतिविधियों को और हवा देने के लिए कांग्रेस जल्दी ही अपना टेलीविजन चैनल भी लॉन्च करने जा रही है। केरल, आंध्र प्रदेश और कुछ अन्य दक्षिणी राज्यों में वहां की क्षेत्रीय भाषाओं में इन टीवी चैनलों ने प्रायोगिक रूप से काम करना शुरू भी कर दिया है। हिन्दी भाषा में पूरी तरह व्यावसायिक पार्टी चैनल भी जल्द ही हम लोगों को देखने को मिलेगा। इस संबंध में जारी आधिकारिक वक्तव्य को देखें तो पार्टी का कहना है कि चैनल पर समाचार और सम-सामयिक घटनाक्रमों पर आधारित कार्यक्रम प्रसारित किए जाएंगे। और, यह कुछ-कुछ न्यूज़ चैनल जैसा ही दिखेगा, जिसे 'कार्यकर्ता' चलाएंगे।

कांग्रेस की इन गतिविधियों को भाजपा कोसती जरूर है, लेकिन पार्टी अपनी 'प्रतिद्वंद्वी' से ज्यादा पीछे नहीं है। पार्टी की सकल घरेलू उत्पाद विकास दर पूरे भारत की आठ फीसदी की विकास दर से कुछ ही कम है। पार्टी ने साल 2003 में 72.3 करोड़ रुपये, 2004 में 160.13 करोड़ रुपये और साल 2005 में 104.12 करोड़ रुपयों की उगाही की। उगाही में जो कमी दिख रही है, वह इस वजह से है कि भाजपा फिलहाल सत्ता में नहीं है। अगर पार्टी सत्ता में लौटी तो पार्टी की अर्थव्यवस्था में निश्चित रूप से 'उछाल' आएगा।

कांग्रेस के बड़े-बड़े होर्डिंगों को देखकर पिछली बार के राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन का चुनाव पूर्व अभियान याद आ जाता है। तब राजग ने देशभर में सभी सड़कों और हाईवे को 'इंडिया शाइनिंग' के बोर्डों से भर दिया था। हाल ही में भारतीय जनता पार्टी के सूचना प्रौद्योगिकी प्रकोष्ठ ने कॉरपोरेट

उत्कृष्टता के लिए इस साल का 'सीआईओ-100' अवार्ड जीता है। पार्टी के सूचना प्रौद्योगिकी प्रकोष्ठ को अंतरराष्ट्रीय पत्रिका 'सीआईओ' ने औद्योगिक उत्कृष्टता के लिए देश के शीर्ष 100 संगठनों में चुना है। 'सीआईओ' आईटी नीति-निर्माताओं की दुनिया की अग्रणी पत्रिका है, जिसने भाजपा के साथ-साथ इस सम्मान के लिए देश की अन्य कंपनियों महिन्द्रा एंड महिन्द्रा, एचसीएल, एलएंडटी, केपीएमजी कोग्नीजेंट और विप्रो को भी इसी सूची में चुना है। जाहिर है, ये कंपनियां भाजपा से इस मामले में 'पीछे' हैं। इसी से आप वस्तुस्थिति समझ सकते हैं। हालांकि पार्टी की दलील है कि यह अवार्ड पार्टी द्वारा अपने प्रशासन में सूचना प्रौद्योगिकी के समुचित प्रयोग को लेकर दिया गया है। 'सीआईओ' दुनिया के करीब 25 देशों में जाती है और यह पुरस्कार अमेरिका में 20 साल पहले शुरू किया गया था।

वामदल भी कमाई करने में बिल्कुल पीछे नहीं हैं। वामदलों ने वर्ष 2001 से 2006 के दौरान करीब 152 करोड़ रुपये उगाहे। इस दौरान समाजवादी पार्टी की आर्थिक विकास दर में 40.9 फीसदी की वृद्धि हुई। बहुजन समाज पार्टी की आर्थिक विकास दर में भी 32.2 फीसदी की वृद्धि देखी गई। बहुजन समाज पार्टी ने साल 2003 में 29.51 करोड़ रुपये, साल 2004 में 10.91 करोड़ रुपये और साल 2005 में 4.20 करोड़ रुपये उगाहे।

तो, अब अगले चुनाव में हम और आपको अपनी पसंदीदा 'कंपनी' को वोट देने के लिए तैयार हो जाना चाहिए...

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