--धर्मेंद्र कुमार
एक पागल-पागल सी लड़की,
दिल तोड़ने से डरती थी।
हर पल, हर लम्हा खुद से वो झगड़ती थी...
आंसू क्यूं आएं किसी आंख में,
मुजरिम खुद को समझती थी।
घुट-घुट के जीती रहती थी,
हर सांस उलझती रहती थी...
सो बार-बार कहा, ऐ नादान लड़की...
दुनिया को देखना छोड़ दे,
खुद से उलझना छोड़ दे,
पल-पल बिखरना छोड़ दे।
यहां हसरत दिल की कोई नहीं,
यहां नाजुकी से काम न ले,
यहां पत्थर बनना पड़ता है,
यहां रहमदिली से काम न ले,
सौ बार कहा पर कैसी नासमझी।
दुनिया को सब समझती थी,
फिर वही हुआ जो होना था,
दिल टूटा उसका जिसका उसे रोना था।
भरोसे की दीवार गिरी,
सर्द लहजी हर बार मिली,
फिर सिमट गई अपनी जात में,
तमाम दुखों को समेटे आंचल में।
आंखों में जज्बात नहीं,
पहले से हालात नहीं,
फर्क सिर्फ इतना हुआ,
खुद अपनी जात को तोड़ दिया,
तन्हाइयों से रिश्ता जोड़ दिया।
फिर तन्हा-तन्हा रहने लगी...
फिर खुद को पत्थर कहने लगी,
वो एक पागल-पागल सी लड़की...
जो दिल तोड़ने से डरती थी।
1 comment:
es se acchi peom aaj tak nahi padi maine...........i don't have words to praise ........ i am speechless...
Post a Comment